समास (Compound) की परिभाषा एवं इसके भेद

Category: हिंदी व्याकरण

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नमस्कार सभी का स्वागत है हमारे वैबसाइट पर और हम इस बार आपको समास (compound) के बारे में जानकारी देंगे।

समास (Compound) की परिभाषा एवं इसके भेद
समास (Compound) की परिभाषा एवं इसके भेद

निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िये:

क्र.सं.

()

()

01

भाई और बहिन

भाईबहिन

02

हवन के लिए सामग्री

हवनसामग्री

03

घोड़े पर सवार

घुड़सवार

04

चंद्रमा के समान मुख

चंद्रमुख

05

दो पहरों का समूह

दोपहर

06

शक्ति के अनुसार

यथाशक्ति

07

दस हैं आनन (मुंह)

दशानन

दोनों वर्गों के शब्द-समूहों में निम्नलिखित अंतर स्पष्ट है:

  1. ‘क’ वर्ग के ‘शब्द-समूह ‘ख’ वर्ग के शब्दों से बड़े हैं। 
  2. ‘क’ वर्ग के शब्दों में परसर्ग (पर, के लिए) तथा संयोजक (और) आदि का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘ख’ वर्ग के सभी शब्द ‘क’ वर्ग के शब्दों के संक्षिप्त रूप हैं, जिन्हें समस्त पद या सामासिक शब्द कहते हैं तथा जिस विधि से समस्त पद या सानासिक शब्द बनाते हैं उन्हें समास। सामासिक शब्दों के मध्य के संबंध को सही करने को समास विग्रह’ कहा जाता है। 

    आपस में सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक पदों के मेल को समास कहते हैं।

      संधि और समास में अन्तर :

        कुछ विद्यार्थी संधि और समास को एक ही मान लेते हैं, परन्तु ऐसी बात नहीं है। संधि और समास दोनों अलग-अलग चीजें हैं। ध्यान दीजिए- 

        • संधि में वर्णों का मेल होता है, जिसके फलस्वरूप वर्णों में ही परिवर्तन होता है। जैसे- ‘नर + इन्द्र’ में ‘अ + इ वर्णों के मेल से ‘ए’ परिवर्तन होकर ‘नरेन्द्र’ शब्द बन गया है। 
        • समास में शब्दों (पदों) का मेल होता है तथा वर्णों में परिवर्तन नहीं होता। समास का अर्थ है सक्षेप अर्थात् समास में एक से अधिक पदों को मिलाकर उनका संक्षिप्त रूप बना दिया जाता है। जैसे-
        “यज्ञ के लिए शाला इन पदों को संक्षिप्त करके यज्ञशाला सामासिक शब्द बनाया गया। 
        ‘महान है राजा जो इन पदों को सक्षिप्त करके ‘महाराजा’ सामासिक पद बनेगा।

        समास के भेद

        समास के चार भेद हैं
        1. अव्ययीभाव समास
        2. तत्पुरुष समास
        3. बहुव्रीहि समास
        4. द्वन्द्व समास ।

        1. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)

        जिन समस्तपद का प्रथम पद (शब्द) अव्यय हो एवं समस्तपद वाक्य में क्रियाविशेषण का कार्य करे, उसे अव्ययीभाव समास कहा जाता हैं। जैसे-

        विग्रह

        सामासिक शब्द

        रात ही रात में

        रातोंरात

        मृत्यु (मरण) तक

        आमरण

        विधि के अनुसार

        यथाविधि

        बिना जाने

        अनजाने

        खूबी के साथ

        बखूबी

        एकएक

        प्रत्येक

        याद रखिए :
        (अ) अव्ययी भाव समास होने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता, ” समस्तपद अव्यय बन जाता है।
        (आ) इनके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगते।

        2. तत्पुरुष समास (Determinative Compound) 

        तत्पुरुष समास में दूसरा पद (शब्द) प्रधान होता है। इसकी बनावट में दो शब्दों के मध्य का कारकीय चिह्न को के, की, के लिए, में, से, पर का लोप हो जाता है । जैसे-शरणागत = शरण को आया। 
        कारकों की विभक्तियों के नामों के अनुसार इसके छः भेद किए गए हैं:
        तत्पुरुष समास

        •  कर्म तत्पुरुष कर्म की विभक्ति ‘को’ का लोप:

        विग्रह

        सामासिक शब्द

        यश को प्राप्त

        यशप्राप्त

        ग्राम को गया हुआ

        ग्रामगत

        गिरह को काटने वाला

        गिरहकट

        परलोक को गमन

        परलोकममन

        • करण तत्पुरुष कारक की विभक्ति से, द्वाराका लोप:

        कीर्ति से मुक्त

        कीर्तिमुक्त

        तुलसी से (द्वारा) कृत

        तुलसीकृत

        मद से अंधा

        मदाध

        जन्म से रोगी

        जन्मरोगी

        मन से माना

        मनमाना

        शोक से आकुल

        शोकाकुल

        • सम्प्रदान तत्पुरुष कारक की विभक्ति के लिएका लोप:

        यज्ञ के लिए शाला

        यज्ञशाला

        गुरु के लिए दक्षिणा

        गुरुदक्षिणा

        हाथ के लिए कड़ी

        हथकड़ी

        मार्ग के लिए व्यय

        मार्गव्यय

        देश के लिए भक्ति

        देशभक्ति

        • अपादान तत्पुरुष कारक की विभक्ति सेका लोप :

        पथ से भ्रष्ट

        पथभ्रष्ट

        बंधन से मुक्त

        बंधनमुक्त

        काम से जी चुराने वाला

        कामचोर

        धर्म से विमुख 

        धर्मविमुख

        ह्रदय से हीन

        हृदयहीन

        • सम्बन्ध तत्पुरुष की विभक्ति का, की, केका लोप:

        लक्ष्मी का पति

        लक्ष्मीपति

        गंगा का जल

        गंगाजल

        सेना का नायक

        सेनानायक

        पितृ (पिता) का गृह 

        पितृगृह

        घोड़ों की दौड़

        घुड़दौड़

        • अधिकरण तत्पुरुष की विभक्ति में पर का लोप:

        गृह (घर) में प्रवेश

        गृहप्रवेश

        आनंद में मग्न

        आनंदमग्न

        घोड़े पर सवार

        घुड़सवार

        सिर में दर्द

        सिरदर्द

        आत्म (स्वयं) पर विश्वास

        आत्मविश्वास

        तत्पुरुष समास के उपभेद

        तत्पुरुष समास के पाँच उपभेद हैं, विद्यार्थियों के स्तर को ध्यान में रखकर हम यहाँ केवल दो की ही जानकारी देंगे।
        • कर्मधारय समास (Appositional Compound)
        • द्विगु समास (Numeral Compound)
        कर्मधारय समास (Appositional Compound) – जहां विशेषण – विशेष्य या उपमेय-उपमान का संबंध हो, वहाँ कर्मधारय समास होता है। इसमें दूसरा पद प्रधान होता है। [जिससे किसी चीज़ की उप्मा दी जाए (तुलना की जाए) उसे ‘उपमान’ तथा जिसकी उमन दी जाए उसे ‘उपमेय’ कहा जाता है।]
        कर्मधारय समास के उदाहरण:

        •  विशेषण – विशेष्य – पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य :

        विग्रह

        सामासिक शब्द

        नीली है जो गाय

        नीलगाय

        महान है जो राजा

        महाराजा

        महान है जो देव

        महादेव

        काली है जो मिर्च

        कालीमिर्च

        • उपमेय-उपमान:

        मुख रूपी चंद्र

        मुखचन्द्र

        विद्या रूपी धन

        विद्याधन

        • उपमान-उपमेय

        कमल के समान नयन

        कमलनयन

        घन के समान श्याम

        घनश्याम

        द्विगु समास (Numeral Compound) – जिस समस्तपद (सामासिक शब्द) का पहला पद संख्यावाची विशेषण हो उसे द्विगु समास (Numeral Compound) कहते हैं। जैसे – 

        तीनों लोकों का समूह

        त्रिलोक

        चार मासों (महीनो) का समूह

        चौमासा

        चार राहों का समूह

        चौराहा

        नव (नौ) रत्नों का समूह

        नवरत्न

        सप्त (सात) द्वीपों का समूह

        सप्तद्वीप

        3. बहूव्रीहि समास (Attributive Compound)

        जिस समस्तपद का अर्थ उसमें सम्मिलित दोनों पक्षों के अर्थों से अलग प्रकट हो, उसे बहूव्रीहि समास कहते हैं। इस समास में कोई पद प्रधान नहीं होता, बल्कि समस्तपद किसी और ही अर्थ का वाचक बन जाता है । जैसे – 

        सामासिक शब्द

        विग्रह

         

        पीताम्बर

        पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका

        श्रीकृष्ण या विष्णु

        गजानन

        हाथी का मुँह है जिसका

        गणेश

        चक्रधर

        चक्र को धारण करने वाला

        विष्णु

        विषधर

        विश को धारण करने वाला

        सर्प

        पंकज

        पंक (कीचड़) में जन्मा

        कमल

        चन्द्रमुखी

        चंद्रमा के समान मुख है जिसका

        स्त्री विशेष

        मृगनयनी

        मृग के समान नयन वाली है जो

        स्त्री विशेष

        चतुरानन

        चार मुख हैं जिसके

        ब्रह्मा

        4. द्वंद्व समास (Coupulative Compound)

        जिस समास में दोनों खंड समान (प्रधान) हों, उसे द्वंद्व समास कहते हैं। सामासिक शब्द के दोनों खंड अर्थ की दृष्टि से स्वतंत्र होते हैं तथा इनके बीच का ‘और’, ‘एवं’, ‘तथा’, ‘या’, ‘अथवा’ आदि लुप्त हो जाते हैं। जैसे – 

        विग्रह

        सामासिक शब्द

        सुख और दु:ख

        सुख-दु:ख

        सीता और राम

        सीताराम

        जल और वायु

        जलवायु

        उतार और चढ़ाव

        उतारचढ़ाव

        तन, मन और धन

        तन-मन-धन

        लेना और देना

        लेना-देना

        चर और अचर

        चराचर

        माता और पिता

        माता-पिता

        समास के संबंध में ध्यान रखने योग्य विसेश बातें-
        • संधि और समास दो बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं।
        • कई शब्दों में संधि और समास दोनों भी हो सकते हैं । जैसे – 

         1

        सज्जन – सत् (अच्छा) जन

        सत् + जन

        कर्मधारय समास

        व्यंजन संधि

         2

        पीताम्बर – पीले हैं अम्बर (वस्त्र) जिसके

        पीत + अम्बर

        बहूव्रीहि समास

        दीर्घ संधि

         3

        देवालय – देव के लिए आलय

        देव + आलय

        तत्पुरुष समास

        दीर्घ संधि

         4

        सूर्योदय – सूर्य का उदय

        सूर्य + उदय

        तत्पुरुष समास

        गुण संधि

        • बहूव्रीहि तथा कर्मधारय समास में अंतर – बहुत से शब्द बहूव्रीहि तथा कर्मधारय दोनों समासों के उदाहरण होते हैं। ऐसे शब्द बहूव्रीहि समास हैं या कर्मधारय – इस बात का निर्णय इनके विग्रह पर निर्भर करता है। समस्तपद का एक पद दूसरे पद का विशेषण हो या दोनों पदों में उपमेय-उपमान का संबंध हो, तो कर्मधारय समास होता है और यदि दोनों पदों के मेल से कोई तीसरा (अन्य) अर्थ प्रकट हो, तो बहूव्रीहि समास होता है। जैसे 

        1.

        • नीलकंठ – नीला कंठ
        • नीला कंठ है जिसका (शिव)

        • कर्मधारय समास (विशेषण- विशेष्य)
        • बहूव्रीहि समास (अन्य अर्थ शिव)

        2.

        • पीताम्बर – पीला अम्बर
        • पीले अम्बर (वस्त्र) हैं जिसके

        • कर्मधारय समास (विशेषण- विशेष्य)
        • बहूव्रीहि समास (श्री कृष्ण या विष्णु) तीसरा अर्थ प्रकट हो
          रहा है

        3.

        • चंद्रमुख – चन्द्र जैसा मुख
        • चन्द्र जैसे मुख वाला है जो

        • कर्मधारय समास (विशेषण- विशेष्य)
        • बहूव्रीहि समास (तीसरा अर्थ विशेष व्यक्ति
          जिसका मुख चन्द्रमा जैसे हो
          , प्रकट हो रहा है)

        4.

        • नीलांबर – नीला अम्बर
        • नीला अम्बर (वस्त्र) है जिसका

        • कर्मधारय समास (विशेषण- विशेष्य)
        • बहूव्रीहि समास (तीसरा अर्थ विशेष व्यक्ति
          जिसके वस्त्र नीले हों
          प्रकट हो रहा है।)

        • द्विगु और बहूव्रीहि समास में अंतर – कभी कभी द्विगु तथा समास में एक से शब्दों का प्रयोग होता है। इनके विग्रह को देखकर भी यह सरलता से अनुमान लगाया जा सकता है कि द्विगु या बहूव्रीहि में से किस समास के उदाहरण हैं।
        यदि समस्त पद में से पहला पद संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है और यदि दोनों पदों के मेल से कोई अन्य अर्थ निकाल रहा है तो बहूव्रीहि समास माना जाता है । जैसे – 

        1.

        चतुर्भुज – चार भुजाएँ

        चार भुजाएँ है जिसकी (विष्णु)

        द्विगु समास (पहला पद संख्यावाची)

        बहूव्रीहि समास (तीसरा अर्थ प्रकट हो रहा है – विष्णु)

        2.

        दशानन – दस आनन

        दस आनन हैं जिसके (रावण)

        द्विगु समास (पहला पद संख्यावाची)

        बहूव्रीहि समास (तीसरा अर्थ प्रकट हो रहा है – रावण)

        3.

        त्रिनेत्र – तीन नेत्रों का समूह

        तीन हैं नेत्र जिसके (शिव)

        द्विगु समास (पहला पद संख्यावाची)

        बहूव्रीहि समास (तीसरा अर्थ प्रकट हो रहा है – शिव)

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