नमस्कार! इस अध्याय में हम क्रिया (Verb) के बारे में जानेंगे और कोशिश करेंगे की आप इस अध्याय की सहायता से क्रिया (Verb) के बारे मे सब कुछ समझ सकें।
निम्नलिखित वाक्यों को पढिए:
बच्चा सो रहा है।
खिलाड़ी क्रिकेट खेल रहे हैं।
मैं केला खाता हूँ।
गाय दूध देती है।
बकरी घास चर रही है।
इन वाक्यों में से यदि 'सो रहा है', 'खेल रहे हैं', 'खाता हूँ', 'देती है', तथा 'चर रही है' शब्दों को हटा दिया दें तो इसका वाक्यों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इन शब्दों के बिना वाक्य अधूरे रह जाएंगे। ये सभी शब्द क्रिया हैं। किरया के बिना कोई भी वाक्य पूर्ण नहीं होता । इन सभी शब्दों से किसी न किसी काम का करना पाया जाता है।
इन वाक्यों में 'है', 'हूँ', 'हो' तथा 'थे' भी क्रिया शब्द हैं। इन शब्दों से किसी भी कार्य का करना नहीं पाया जाता। हैं इनसे काम का होना अवश्य पाया जा रहा है।
इस प्रकार क्रिया की दो विशेषताएँ हैं:
जिससे किसी कार्य का करना पाया जाए, या
किसी कार्य का होना पाया जाए।
जिस शब्द से किसी काम का करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते हैं।
जब किसी क्रिया से किसी क्रिया के करने का बोध होता है, तो उसे पहचानना सरल है, परंतु जब क्रिया द्वारा किसी कार्य के होने का संकेत होता है तो प्राय: विद्यार्थी भूल कर जाते हैं।
निम्नलिखित वाक्य देखिये:
वर्षा हो रही है
मजदूरों द्वारा कार्य हो रहा है
इन वाक्यों में 'हो रही है' तथा 'हो रहा है' क्रियाएँ किसी कार्य का होना प्रकट नहीं कर रहीं है, क्योंकि वर्षा का होना तथा कार्य का होना किसी काम के होने के नहीं किसी प्रक्रिया की ओर संकेत कर रही हैं।
अब इन वाक्यों को पढिए:
तुम्हारी किताब मेज पर है।
हम तीन भाई हैं
इन वाक्यों में 'है' तथा 'हैं' क्रिया द्वारा किताब के मेज पर होने तथा हमारे तीन भाई होने की ओर संकेत है। ये दोनों क्रियाएँ 'होने' का बोध कराती हैं। जिन क्रियाओं से 'क्या है' प्रश्न का उत्तर मिलता है, वे ही 'होने' का बोध कराने वाली क्रियाएँ हैं। 'करने' या होने वाली क्रियाओं को 'कार्यवाची' तथा 'अस्तित्व वाची' क्रिया के रूप में सरलता से पहचाना जा सकता है। क्रिया तथा स्थिति को होने वाली क्रियाएँ वास्तव में 'To be' का अनुवाद है: उदाहरण के लिए:
राम पढ़ता है ('पढ़ता है' - कार्यवाची क्रिया, पढ़ने की क्रिया का बोध करा रही है)
मोहन बीमार है। ('है' अस्तित्ववाची क्रिया, बीमार होने की क्रिया या स्थिति का बोध करा रही है।)
धातु (Root) - लिखना, लिखूँ , लिखो, लिखे, लिखा, लिखेगा, लिखुंगा, लिखता हूँ, लिख रहा हूँ, आदि में कौन-सा अंश समान रूप से सभी में विद्यमान है? 'लिख' अंश सभी मे विद्यमान है।
क्रिया के विभिन्न रूपों में जो अंश समान रूप से पाया जाता है, उसे धातु कहते हैं। जैसे ऊपर के उदाहरण मे 'लिख' धातु है।
'धातु' के साथ 'ना' जोड़ने पर क्रिया का सामान्य रूप बनाता है। शब्द कोश (Dictionary) में क्रिया शब्द इसी रूप में मिलता है। जैसे - लिख+ना = लिखना, पढ़+ना = पढ़ना, हँस+ना = हँसना
क्रिया के भेद
निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िए:
लड़का खेलता है।
सीता सो रही है।
मैं दिल्ली में रहता हूँ।
इन वाक्यों में से कर्म छांटिए। इन वाक्यों में कर्म नहीं है तथा 'खेलता है', 'सो रही है', 'रहता हूँ' - क्रियाओं का फल कर्ता पर पढ़ रहा है। 'खेलने' का फल 'लड़के' पर; सोने का फल 'सीता' पर तथा रहने का फल 'मैं' कर्ता पर पड़ रहा है।
अब इन वाक्यों को पढ़िए:
लड़का क्रिकेट खेलता है।
सीता खाना पकाती है
मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
इन वाक्यों में 'क्रिकेट', 'खाना' और 'पुस्तक' कर्म है तथा 'खेलता है', 'पकाती है' और 'पढ़ता हूँ' 'क्रियाओं का फल कर्म ('क्रिकेट' 'खाना' और 'पुस्तक') पर पड़ रहा है।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि कर्म के आधार पर क्रियाओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है।
अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb) - वे क्रियाएँ जिनके साथ कर्म न लगे तथा क्रिया का व्यापार और फल दोनों कर्ता में रहें। जैसे सोहन हँस रहा है, सीता बेटी है, आम मीठा है।
सकर्मक क्रिया (Transitive Verb) - वे क्रियाएँ जिनके साथ कर्म लगे तथा क्रिया का फल कर्म पर पड़े। जैसे राम ने खाना खाया, सीता गीत गा रही है, मैंने चार आम खाये।
विशेष - क्रिया के साथ 'क्या', 'किस' और 'किसको' प्रश्न जोड़े जाने पर यदि उचित उत्तर मिले तो क्रिया सकर्मक होती है, और यदि उचित उत्तर न मिले तो अकर्मक। जैसे -
सविता रो रही है।
सविता चित्र बना रही है।
इन वाक्यों में 'रो रही है' और 'बना रही है' क्रियाएँ हैं। इनमें 'क्या' और 'किसे' या 'किसको' प्रश्न पूछिए।
क्या रो रही है ? किसे या किसको रो रही है ? (x)
क्या बना रही है?(चित्र)
अतः स्पष्ट है कि 'बना रही है' क्रिया सकर्मक है जबकि 'रो रही है' अकर्मक
ध्यान रहे - कभी - कभी अकर्मक क्रिया सकर्मक भी बन जाती है। जैसे
1. वह रोता है (अकर्मक)
वह अपना रोना रोता है (सकर्मक 'रोना' - कर्म)
2. वह सोता है(अकर्मक)
वह गहरी नींद सोता है (सकर्मक, 'गहरी नींद' - कर्म)
द्विकर्मक क्रियाएँ (Verb with two objects)
कुछ सकर्मक क्रियाओं में दो कर्म होते हैं। जैसे
राम ने मोहन को पुस्तक दी।
सीता ने मुझे चित्र दिया।
मैंने पिताजी को पत्र लिखा।
इन वाक्यों में 'क्या', 'किसे' और 'किसको' प्रश्न करें, तो निम्नलिखित उत्तर मिलते हैं।
क्या दी - पुस्तक, किसे दी - मोहन को
क्या दिया - चित्र, किसे दिया - मुझे
क्या लिखा - पत्र, किसे लिखा - पिताजी को।
अत: इन सभी वाक्यों में दो-दो कर्म हैं। ये सभी द्विकर्मक क्रियाओं के उदाहरण हैं। इन कर्मों में जो 'क्या' का उत्तर देते हैं, वे प्रधान कर्म माने जाते हैं तथा जो 'किसे' या 'किसके' का उत्तर देते हैं, वे गौण कर्म।
ध्यान रखिए:
मुख्य कर्म के साथ 'को' परसर्ग नहीं आता।
मुख्य कर्म अप्राणिवाचक होता है।
मुख्य कर्म, गौण कर्म के बाद और क्रिया से पहले आता है।
गौण कर्म अप्राणिवाचक होता है तथा इसके साथ 'को' परसर्ग लगा होता है।
विशेष: निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िये:
मेरी गुरुजी विद्वान है।
हम लोगों ने दीपक को मॉनिटर बनाया
इन वाक्यों में 'हैं' तथा 'बनाया' क्रियापद हैं। पहले वाक्य में 'हैं' - क्रिया अकर्मक है तथा दूसरे वाक्य वाक्य की क्रिया 'बनाया' सकर्मक है; परंतु ये दोनों क्रियाएँ अपने आप में पूर्ण नहीं हैं क्योंकि यदि पहले वाक्य से 'विद्वान' तथा दूसरे वाक्य से 'मॉनिटर' शब्दों को हटा लें तो ये दोनों वाक्य अपूर्ण हो जाएंगे तथा इंका अर्थ समझ में नहीं आयेगा देखिये।
जो क्रियाएँ पूरा होने के लिए किसी शब्द (पूरक-complementary) की अपेक्षा रखती हैं उन्हें अपूर्ण क्रिया कहते हैं। इनमें अर्थ को पूरा करने के लिए या तो कर्ता के पूरक की आवश्यकता पड़ती है या कर्म के पूरक की। ऊपर के दो वाक्यों में विद्वान कर्ता का पूरक है तथा 'मॉनिटर' कर्म का पूरक है।
बनाना, समझना, चुनना आदि ऐसी अपूर्ण क्रियाएँ हाँ जिन्हें कर्म के पूरक के रूप में किसी शब्द की आवश्यकता पड़ती है तथा लगाना, होना, रहना, ठहरना, निकलना, बनना आदि ऐसी अपूर्ण क्रियाएँ हैं जिन्हें कर्ता के पूरक के रूप में किसी अन्य शब्द की आवश्यकता पड़ती हैं।
संरचना के दृष्टि से क्रिया के भेद
सरंचना की दृष्टि से क्रियाएँ चार प्रकार की होती हैं -
संयुक्त क्रिया
प्रेरणार्थक क्रिया
नाम धातु क्रिया
कृदंत क्रिया
संयुक्त क्रिया (Compound Verbs)
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यान से पढ़िये:
क
राम ने सुना
राम ने लिया
राम ने सुन लिया
ख
वह चुपचाप चला
वह गया
वह चुपचाप चला गया
'क' वर्ग के पहले तथा दूसरे वाक्य में 'सुना' और 'लिया' क्रिया-पद हैं जबकि तीसरे वाक्य में 'सुन लिया' क्रिया है। इसी प्रकार 'ख' वर्ग के पाले तथा दूसरे वाक्य में क्रमश: 'चलो' और 'गया' क्रिया पद हैं जबकि तीसरे वाक्य में 'चला गया' क्रिया है। इस प्रकार दोनों वर्गों के तीसरे वाक्यों में एक से अधिक क्रियाओं का प्रयोग हुआ है।
सुन+लिया, चला + गया
यदि दो से अधिक क्रियाओं का साथ साथ प्रयोग हो तो उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे -
खा चुका, लिख लिया, रो पड़ा, हंस दिया।
संयुक्त क्रियाओं में पहली क्रिया मूल क्रिया होती है जो मुख्य अर्थ देती है तथा इसके बाद प्रयोग की जाने वाली शेष क्रियाएँ रंजक क्रियाएँ कहलाती हैं। जैसे -
वह विदेश से आ गया है
('आ' मूल क्रिया; 'गया है' रंजक क्रिया 'आ गया है' संयुक्त क्रिया)
उसने पत्र लिख लिया है।
('लिख' मूल क्रिया; 'लिया है' रंजक क्रिया 'लिख लिया है' संयुक्त क्रिया)
संयुक्त क्रिया मेन मूल क्रिया के साथ जो क्रियाएँ आती हैं। उन्हें, रंजक क्रियाएँ भी कहते हैं। ये रंजक क्रियाएँ मूल क्रिया के साथ जुड़कर अर्थ मेन विशेषता ल देती हैं। परंतु जब ये अकेले प्रयोग की जाती हैं तो मुख्य क्रिया ही होती हैं । जैसे -
लेना, देना, डालना, पड़ना, जाना, बैठना, पाना, चलना, रहना, चाहना, करना आदि रंजक क्रियाएँ हैं। इनके प्रयोग पर ध्यान दीजिये-
क्रिया
मुख्य क्रिया के रूप में
रंजक क्रिया के रूप में
रहना
वह यहाँ रहता है।
वह दिन भर खेलता रहता है
(निरंतरता का बोध कराती है - Continuity
देना
पुस्तक मुझे दो।
मुझे पढ़ने दो
(अनुमति का बोध करती है - permission)
लगना
मुझे लगा, वह आया है।
वह चलने लगा
(आरंभ का बोध कराती है - beginning)
पड़ना
यहाँ कूड़ा पड़ा है।
मुझे पढ़ना पड़ा
(विवशता का बोध कराती है)
प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verbs)
नीचे दिये गए वाक्यों को पढ़िये:
बच्चा दूध पीटा है।
माँ बच्चे को दूध पिलाती है।
माँ बच्चे को नौकर से दूध पिलवाती है।
पहले वाक्य में कर्ता (बच्चा) स्वयं काम करता है (दूध पीता है)। दूसरे वाक्य में कर्ता (माँ) दूसरे के लिए (बच्चे के लिए) काम करती है (बच्चे को दूध पिलाती है) तथा तीसरे वाक्य में कर्ता (माँ) स्वयं काम नहीं करती अपितु दूसरे से (नौकर से) काम करवाती है (दूध पिलवाती है)। दूसरे और तीसरे वाक्यों की क्रियाएँ प्रेरणार्थक क्रियाएँ हैं।
जिस क्रिया से यह पता चले कि कर्ता स्वयं काम न करके किसी दूसरे को काम करने के लिए प्रेरित कर रहा है, वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है।
प्रेरणार्थक क्रिया के दो रूप होते हैं-
(क) प्रथम प्रेरणार्थक (First causal) - जब कर्ता स्वयं भी कार्य में सम्मिलित होता हुआ प्रेरणा देता हो, तब उसे प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे - वह सबको भजन सुनता है।
(ख) द्वितीय प्रेरणार्थक (Second causal) - जब कर्ता स्वयं कार्य न करके दूसरे को कार्य करने कि प्रेरणा देता है, तब उसे द्वितीय प्रेरणार्थक कहते हैं। नीचे के कुछ उदाहरण देखिये-
प्रथम प्रेरणार्थक
द्वितीय प्रेरणार्थक
वह हँसता है
वह बच्चों को हंसाता है
वह जोकर से बच्चों को हंसवाता है।
वह पढ़ता है
वह बच्चों को पढ़ता है।
वह राम से बच्चों को पढ़वाता है।
वह हिन्दी सीखता है
वह बच्चों को हिन्दी सिखाता है।
वह अध्यापक से बच्चों को हिन्दी सिखवाता है
नामधातु क्रिया (Nominal Verbs)
जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनती हैं, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं । जैसे -
हाथ से हथियाना, गर्म से गर्माना, खटखट से खटखटाना आदि।
शब्दों के अंत में प्रत्यय या शब्दांश जोड़कर बनी क्रियाओं को कृदंत क्रिया शब्द कहते हैं । जैसे
वर्तमानकालिक कृदंत
चल+ता = चलता
पढ़+ता = पढ़ता
भूतकालिक कृदंत
चल+आ = चला
देख+आ = देखा
भविष्यकालिक कृदंत
चल+कर = चलकर
पढ़+कर = पढ़कर आदि
पूर्वकालिक क्रिया
निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िये:
बच्चा दूध पीकर सोया।
वह दौड़कर घर पहुंचा।
वह फिल्म देखकर हँसा।
इन वाक्यों में 'सोया', 'पहुँचा' तथा 'हँसा' मुख्य क्रियाएँ हैं। इन क्रियाओं से पूर्व 'पीकर', 'दौड़कर' तथा 'देखकर' क्रियाएँ भी प्रयोग कि गयी हैं। ये पूर्वकालिक क्रियाएँ हैं।
किसी मुख्य क्रिया से पूर्व यदि दूसरी क्रिया प्रयुक्त हो, तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है। मूल धातु में प्राय: 'कर' या 'करके' जोड़कर पूर्वकालिक क्रिया बनाई जाती है।
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