भाषा व्याकरण और बोली (Language, Grammar & Dialect)

Category: हिंदी व्याकरण

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 भाषा व्याकरण और बोली (Language, Grammar & Dialect)

भाषा (Language)

अपने विचारों और भावों को प्रकट करने के लिए हमारे पास कई उपाय हैं। एक छोटा बच्चा केवल रोकर या हँसकर अपने मन की बात प्रकट कर देता है कि उसे भूख लगी है, प्यास लगी है या कोई कष्ट है। गूँगा व्यक्ति संकेतों या अस्पष्ट ध्वनियों से अपने विचारों या भावों को प्रकट करने की कोशिश करता है। रेल का गार्ड झंडी दिखाकर गाड़ी चलने का आदेश देता है, बस का कण्डक्टर अलग-अलग ढंग से सीटी बजाकर बस को रुकने या चलने का निर्देश देता है। परन्तु इन संकेतों तथा अस्पष्ट ध्वनियों को भाषा नहीं कहा जाता। शब्दों द्वारा विचारों के आदान-प्रदान को ही भाषा कहा जाता है, क्योंकि इनके द्वारा व्यक्ति अपने भावों तथा विचारों को समझ सकता है। अतः

“भाषा ऐसा समर्थ साधन है जिसके द्वारा मानव अपने भावों एवं विचारों को प्रकट करता है तथा दूसरों के विचारों को ग्रहण कर सकता है।”

 

विश्व में अनेक भाषाएँ प्रचलित हैं, जैसे-हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, जर्मन, चीनीं, रूसी, फ्रेंच, उर्दू, अरबी आदि। भारत में विभिन्न प्रान्तों में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, जैसे-पंजाबी, तमिल, मलयालम, कन्नड, तेलुगु, बंगला, गुजराती आदि।

भाषा के रूप

भाषा निम्नं दो प्रकार से प्रयुक्त होती है :

(क) कथित भाषा-जब आमने-सामने बैठे व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं या कोई व्यक्ति भाषण आदि द्वारा अपने विचार प्रकट करता है, तो इसे भाषा का कथित रूप कहा जाता है। जैसे, अध्यापक महोदय कक्षा में कथित भाषा का प्रयोग करके आपको पढ़ाते हैं।

(ख) लिखित भाषा-जब व्यक्ति किसी दूर बैठे व्यक्ति को पत्र अथवा लेख द्वारा अपने विचारों से अवगत कराता है तो इसे भाषा का लिखित रूप कहा जाता है। जैसे, आप परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर लिखित भाषा द्वारा ही देते हैं।

कभी-कभी संकेतों द्वारा भी अपने भावों या विचारों को प्रकट किया जा सकता है, परन्तु संकेतों द्वारा व्यक्त किए गए विचार अपूर्ण एवं अस्पष्ट रहते हैं और संकेतों द्वारा सभी प्रकार के विचार व्यक्त नहीं किए जा सकते, इसीलिए संकेतों द्वारा विचारों या भावों को व्यक्त करने की विधि (सांकेतिक भाषा) को महत्त्व नहीं दिया जाता।

व्याकरण (Grammar)

भाषा के शुद्ध ज्ञान के लिए व्याकरण जानना आवश्यक है क्योंकि भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है। इसी नियमबद्ध योजना को व्याकरण कहा जाता है।

व्याकरण यह शास्त्र है जिसके द्वारा हम किसी भी भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

व्याकरण के द्वारा ही हम किसी भी भाषा के शब्दों और वाक्यों के शुद्ध स्वरूपों और शुद्ध प्रयोगों की जानकारी प्राप्त करते हैं। शुद्ध भाषा का पूर्ण ज्ञान व्याकरण के बिना असंभव है।

व्याकरण के अंग या विभाग

व्याकरण के निम्नलिखित तीन मुख्य विभाग हैं:

(क) वर्ण-विचार-इस विभाग में अक्षरों (वर्णों) के आकार, भेद, उच्चारण आदि के विषय में विचार किया जाता है

(ख) शब्द-विचार-शब्द-विचार, व्याकरण के उस विभाग को कहते हैं जिसमें शब्दों के भेद, रूप, बनावट आदि का वर्णन होता है। 

(ग) वाक्य-विचार-वाक्य-विचार, व्याकरण का वह विभाग है जिसमें वाक्यों के भेद, अनेक सम्बन्ध, वाक्य बनाने तथा अलग करने की रीति और विराम चिह्नों का वर्णन होता है।

लिपि (Script)

कथित भाषा में ध्वनियों का प्रयोग होता है तथा लिखित भाषा में अक्षरों या वर्णों का। प्रत्येक लिखित भाषा में हर ध्वनि के लिए कोई-न-कोई चिह्न निश्चित होता है जिसे वर्ण या अक्षर (Alphabet) कहते हैं।

अक्षरों या वणों के चिह्नों को लिखने की विधि ‘लिपि’ कहलाती है। हमारी राष्ट्र-भाषा हिन्दी ‘देवनागरी’ लिपि में लिखी जाती है। इसी प्रकार अंग्रेजी भाषा ‘रोमन’ में, उर्दू भाषा ‘फारसी’ में, पंजाबी भाषा ‘गुरुमुखी’ में तथा संस्कृत भाषा भी ‘देवनागरी’ में लिखी जाती है।

बोली (Dialect)

भाषा और बोली में अन्तर है। बोली देश के किसी सीमित भाग में बोली जाने वाली वह भाषा है जो केवल बोलने के प्रयोग में आती है।

भाषा के क्षेत्रीय रूप को ही बोली कहा जाता है। जैसे-हरियाणवी, राजस्थानी, भोजपुरी, खड़ी बोली आदि। भारतीय भाषाएँ-भारत के संविधान में भारत की निम्नलिखित अठारह भाषाओं को मान्यता दी गई है : 

असमिया, उड़िया, उर्दू, कन्नड़, काश्मीरी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, बंगला, मराठी, मलयालम, संस्कृत, सिंधी, मणिपुरी, नेपाली, कोंकणी और हिन्दी। इनमें हिन्दी को राष्ट्र-भाषा का दर्जा दिया गया है।

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