कारक (Case) की परिभाषा और उसके भेद

कारक (Case) की परिभाषा और उसके भेद, हिन्दी व्याकरण

नमस्कार सभी दोस्तों आज के अध्याय में हम कारक (Case) के बारे में जानेंगे कारक की परिभाषा और उसके भेद के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे।

कारक (Case) की परिभाषा और उसके भेद

नीचे दी गयी अंकित वाक्यों को पढिए:

  1. अर्जुन ने युद्ध किया।
  2. अर्जुन ने जयद्रथ को मारा।
  3. अर्जुन ने जयद्रथ को बाण से मारा।
  4. अर्जुन ने अपने पुत्र अभिमन्यु का बदला लेने के लिए जयद्रथ को मारा।
  5.  अर्जुन के गाँडीव से बाण छूटा।
  6. अर्जुन का बाण जयद्रथ को जा लगा।
  7. पांडवों ने युद्ध - भूमि में अर्जुन की जयकार की।
  8. हे बालको! तुम भी अर्जुन जैसे वीर बनो।
ऊपर के वाक्यों में मोटे (काले) शब्दों के साथ ने, को, के लिए, का, में, हे आदि विशेष चिन्ह लगे हैं जिनके कारण वाक्यों का स्वरूप भिन्न -भिन्न है। ये चिन्ह 'विभक्तियाँ' या 'परसर्ग' कहे जाते हैं। ये सभी चिन्ह कारकों के हैं।
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ उसका संबंध जाना जाए, वह कारक कहलाता है।

कारक के भेद

हिन्दी में कारक निमिलिखित आठ प्रकार के होते हैं।
कारक (Case) की परिभाषा और उसके भेद


  • कर्ता कारक (Nominative Case) - संज्ञा या सर्वनाम के उस रूप को कर्त्ता कहते हैं जिससे क्रिया के करने वाले का बोध होता है। जैसे -

लड़की पत्र लिखती है।

लड़की ने पत्र लिखा

राम पुस्तक पढ़ता है।

राम ने पुस्तक पढ़ी


इन वाक्यों में 'पत्र लिखने की' क्रिया लड़की तथा 'पुस्तक पढ़ने की' क्रिया राम करता है; अत: 'लड़की' और 'राम' कर्त्ता कारक हैं। कर्त्ता कारक की विभक्ति 'ने' है।
हिन्दी में कर्त्ता कारक का प्रयोग 'ने' विभक्ति के साथ तथा विभक्ति के बिना भी किया जाता है। जैसे 'लड़की पत्र लिखती है' - वाक्य में 'ने' विभक्ति का प्रयोग किया गया ।
विशेष: - यद्यपि कर्ता की मूल विभक्ति 'ने' है, पर कभी कभी यह अन्य विभक्तियों के साथ भी आता है। जैसे - 
    • यात्री को दूर जाना था। (यहाँ 'यात्री' कर्त्ता कारक है तथा कर्त्ता कारक के साथ 'को' विभक्ति का प्रयोग किया गया है)
    • रोगी से बैठा भी नहीं जा रहा (यहाँ 'रोगी' कर्त्ता कारक है तथा इसके साथ 'से' विभक्ति का प्रयोग किया गया है।
    • बच्चों द्वारा निबंध लिखा गया। (यहाँ 'बच्चों' कर्त्ता कारक है तथा इसके साथ 'द्वारा विभक्ति का प्रयोग हुआ है।)

ध्यान रखिए- 'ने' विभक्ति का प्रयोग सकर्मक क्रियाओं (Transitive Verbs) के साथ भूतकाल में किया जाता है।

    • जैसे- राम खाना खाता है। ('खाना' क्रिया सकर्मक है, परन्तु वर्तमान काल में है।)
    • राम ने खाना खाया। ('खाना' क्रिया सकर्मक है तथा भूतकाल में हैइसीलिए 'ने' विभक्ति का प्रयोग हुआ है।)
    • राम दौड़ा। (दौड़ा' क्रिया भूतकाल होते हुए भी अकर्मक है, इसलिए 'ने' का प्रयोग नहीं किया गया।)
  • कर्म कारक (Objective Case)- जिस शब्द पर क्रिया के काम का प्रभाव पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं। जैसे-
    • श्याम ने दूध पिया।
    • राम ने रावण को मारा।"
इन वाक्यों में 'श्याम की क्रिया का प्रभाव 'दूध' पर तथा राम की क्रिया का प्रभाव 'रावण' पर पड़ रहा है, अतः दूध तथा रावण कर्म कारक है। कर्म कारक की विभक्ति 'को' है।

हिन्दी में कर्म कारक का प्रयोग 'को' विभक्ति के साथ तथा इसके बिना भी किया जाता है। जैसे-

1. वह खाना खाता है।

2. उसने सौंप को मार दिया।

पहले वाक्य में 'खाना' कर्म कारक के साथ कोई विभक्ति प्रयुक्त नहीं हुई है जबकि दूसरे वाक्य में 'को' विभक्ति का प्रयोग हुआ है।

'को' का प्रयोग प्राणिवाचक कर्म (animate object) के साथ ही होता. है: अप्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ प्राय: नहीं। जैसे-

1. अध्यापक ने बच्चे को पीटा।

2. उसने पुस्तक पढ़ी।

पहले वाक्य में बच्चा' प्राणिवाचक कर्म है, अतः उसके साथ 'को' का प्रयोग किया गया है जबकि दूसरे वाक्य में पुस्तक' अप्राणिवाचक संज्ञा होने के कारण उसके साथ 'को' विभक्ति का प्रयोग नहीं किया गया।

विशेष : (अ) कई वाक्यों में दो कर्म होते हैं। इनमें एक मुख्य कर्म माना जाता है जो प्रायः अप्राणिवाचक होता है तथा दूसरा कर्म गौण जैसे- माँ बच्चे को दूध पिलाती है-वाक्य में दो कर्म है- 'बच्चे को और 'दूध' इनमें 'दूध' मुख्य कर्म है। दो कर्म वाले वाक्यों में मुख्य कर्म के साथ 'को परसर्ग लगता है। इसकी पहचान 'क्या प्रश्न करके की जा सकती है।

क्या पिलाती है ?-दूध अतः यह मुख्य कर्म माना जाएगा

दो कर्म वाले वाक्यों में गौण कर्म की पहचान के लिए किसे' या किसको लगाकर की जाती है जैसे-किसे पिलाती है--बच्चे को अतः बच्चे को गौण कर्म है।

(आ) कभी-कभी विभक्ति रहित कर्म की पहचान के लिए कहाँ प्रश्न भी किया जाता है। जैसे- पिताजी सोनीपत गए-कहाँ गए ? (सोनीपत- कर्म) 

  • करण कारक (Instrumental Case)- कर्त्ता जिस साधन की सहायता से काम करता है, उसे करण कारक कहते हैं। जैसे--
    • 1. वह पेंसिल से चित्र बनाती है।
    • 2. मोहन ने डण्डे से आम तोड़े।
    • 3. मोहन ने पुस्तक नौकर द्वारा भिजवाई है।
    • 4. उसने चटनी से रोटी खा ली।

इस वाक्यों में चित्र बनाने का साधन 'पेंसिल' तथा आम तोड़ने का साधन 'डण्डा है; अतः पेंसिल से' और 'डण्डे से करण कारक है। करण कारक की विभक्ति 'से' (with, by) 'द्वारा' या 'के द्वारा', 'के साथ' होती है। 'से' विभक्ति का प्रयोग केवल साधन के रूप में ही नहीं किया जाता बल्कि 'कारण' आदि का बोध कराने के लिए भी किया जाता है। जैसे- वह तपेदिक से मरा है। (कारण)

  • सम्प्रदान कारक (Dative Case)- कर्त्ता द्वारा जिसके लिए कुछ दिया जाए या कुछ किया जाए, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। जैसे-
    • 1. पिता ने पुत्र को (के लिए) एक पुस्तक दी।
    • 2. भूखे व्यक्ति को खाना दो।
    • 3. वह गुरु जी के लिए उपहार लाया।

इन वाक्यों में पुत्र को’, भूखे व्यक्ति को तथा गुरु जी के लिए सम्प्रदान कारक है। सम्प्रदान कारक की विभक्ति के लिए', 'के वास्ते' तथा 'को' (for) है।

  • 5. अपादान कारक (Ablative Case)- संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे किसी दूसरी वस्तु का अलग होना तथा तुलना करना या डरना पाया जाए. अपादान कारक कहा जाता है। जैसे-
    • 1. पेड़ से पत्ता गिरा।                         (अलग होना)
    • 2. कमला विमला से अच्छी है।   (तुलना
    • 3. वह सौंप से डर गया ।               (करना)

अपादान कारक की विभक्ति 'से' (from than) है।

  • 6. सम्बन्ध कारक (Possessive Case)- संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु से सम्बन्ध ज्ञात हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। जैसे-
    • 1. यह राम का पुत्र है।
    • 2. यह कार मेरी है।
    • 3. भारत के निवासी शान्तिप्रिय है।

इन वाक्यों में राम का', 'मेरी' तथा 'भारत के शब्द सम्बन्ध कारक हैं। सम्बन्ध कारक की विभक्ति का के, की, रा, रे, री (of, apostrophe's) है।

  • 7. अधिकरण कारक (Locative Case)-संज्ञा या सर्वनाम के उस रूप को जिससे क्रिया के आधार का बोध हो, अधिकरण कारक कहते हैं। जैसे-
    • 1. माता जी घर में हैं।
    • 2. वह छत पर खेल रहा है।
    • 3. कौआ पेड़ पर बैठा है।

इन वाक्यों में घर में, छत पर तथा पेड़ पर शब्द अधिकरण कारक है। अधिकरण कारक की विभक्ति में' तथा 'पर' (in on, at into ) हैं।

  • 8. सम्बोधन कारक (Vocative Case) - किसी को बुलाने या पुकारने में सम्बोधन कारक का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
    • 1. अरे बालको! इधर तो आओ।
    • 2. भाइयो और बहनो! देश तुम्हें पुकार रहा है।
    • 3. हे अर्जुन ! आत्मा अजर-अमर है।

इन वाक्यों से स्पष्ट है कि हे अरे ओ ! आदि इसके विभक्ति चिहन है जिनका प्रयोग संज्ञा शब्दों से पूर्व होता है तथा संज्ञा शब्दों के बाद सम्बोधन चिह्न (!) भी लगाया जाता है।

ध्यान में रखने योग्य विशेष बातें

  • 1. 'ने' का प्रयोग

(क) ने विभक्ति का प्रयोग वर्तमान काल में नहीं होता है। जैसे- राम पुस्तक पढ़ता है।

(ख) 'ने' विभक्ति का प्रयोग भूतकाल की सकर्मक क्रियाओं (Transitive Verbs) के साथ होता है। जैसे-

राम ने पुस्तक पढ़ी। (पढ़ी क्रिया भूतकाल में है तथा सकर्मक है।)

  • 2. 'को' का प्रयोग

(क) 'को' विभक्ति का प्रयोग प्राणिवाचक कर्म के साथ होता है. अप्राणिवाचक के साथ नहीं। जैसे-

राम रोटी खाता है।                     राम ने मोहन को पढ़ाया।

इन वाक्यों में रोटी अप्राणिवाचक कर्म है जबकि मोहन प्राणिवाचक इसीलिए मोहन के साथ को विभक्ति का प्रयोग किया गया है।

(ख) जिन वाक्यों में चाहिए तथा जाना है क्रियाओं का प्रयोग होता है, वहाँ भी 'को' विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

(i) राम को आगरा जाना है।

(ii) सुशीला को पुस्तकें चाहिए।

(ग) निश्चित समयसूचक संज्ञाओं के साथ 'को' विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे-

(i)                 मोहन ! तुम संध्या को आना।

(ii)               मैं सोमवार को गाँव जा रहा हूँ।

  • 3. करण कारक और अपादान कारक में अन्तर:

इन दोनों कारकों का विभक्ति चिह्न 'से' है, परन्तु करण कारक के 'से' चिह्न का अर्थ 'सहायता' या 'द्वारा' होता है जबकि अपादान कारक का चिह्न 'से पृथकता को प्रकट करता है।

करण कारक

अपादान कारक

मुनिया कलम से लिखती है।

खान से कोयला निकलता है।

वह रेल से कलकत्ता गया है।

वह कलकत्ता से वापस आ गया है।

  •  4. कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में अन्तर

कर्म कारक में जिस शब्द के साथ 'को' जुड़ा होता है, उस पर क्रिया का फल पड़ता है। जैसे-

मोहन ने अपनी बहिन को पढ़ाया।

लड़को ने पुस्तकों को पढ़ा।

सम्प्रदान कारक के चिह्न 'को' का अर्थ 'के लिए' या 'के वास्ते' होता है। जहाँ किसी को कुछ देने या किसी के कुछ काम करने का बोध होता है, वहाँ जब 'को' का प्रयोग होता है तो उसका आशय 'के लिए', 'के वास्ते', 'के निमित्त आदि होता है। जैसे-

कर्म कारक

संप्रदान कारक

हरीश रमेश को गणित पढ़ा रहा है।

गरीबों को भोजन दे दो

(गरीबों के लिए)

गुरु जी को प्रणाम करो।

वहाँ पहनने को कपड़े भी नहीं मिलते।

(पहनने के लिए)

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नमस्कार दोस्तों। मेरा मुख्य उद्देश्य इंटरनेट के माध्यम से आप तक अधिक से अधिक ज्ञान प्रदान करवाना है

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